भारत रत्न बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर: जाने जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाएँ ||भाग-2|| कब, क्या हुआ? Bharat Ratna Babasaheb Bhimrao Ambedkar: Know important events related to life.|| Part-2 || When, what happened?

 

भाग-2

बाबा साहेब के जीवन कि महत्वपूर्ण घटनाओ का ये दूसरा हिस्सा है | आशा करते है पाठकों को पसंद आएगा|  

29 जनवरी 1932-परेल बम्बई में आयोजित एक विशाल सभा में 114 संस्थाओं द्वारा मानपत्र में समाज का अपार स्नेह व सम्मान पाकर डॉ अंबेडकर भावुक व अभिभूत हुए।

6 फरवरी 1932 -अछूत नेता एम.सी राजा व हिंदू महासभा के डॉ. बी.एस. मुंजे के बीच संयुक्त चुनाव के समर्थन में हुए राजा-मुंजे समझौते पर दिल्ली में हस्ताक्षर |

28 फरवरी 1932 -मद्रास में अछूतों के अलावा, ईसाईयों व मुसलमानों ने भी जोरदार स्वागत कर , पृथक निर्वाचन का समर्थन व राजा-मुंजे पैक्ट की निंदा की ।

मार्च 1932 -लार्ड लेथियन की अध्यक्षता वाली मताधिकार कमेटी की कार्यवाही में भाग लेने के लिए शिमला रवाना ।


अप्रैल 1932 -उत्तरी भारत में स्वामी अछतानंद द्वारा अंबेडकर को समर्थन व राजा-मुंजे पैक्ट का विरोध |

1 मई 1932 -डॉ. लेथियन कमेटी का कामकाज पूरा हो चूका था तथा  अंबेडकर के द्वारा अलग से रिपोर्ट पेश की | अछूतों को अब डिप्रेस्ड क्लास' का नाम दिया गया था ।

मई 1932 –बाबासाहेब निराशा और हताशा के माहौल में भी अछूतों के हकों के लिए संघर्ष शील बने रहे | हिंदू महासभा, आर्य समाज, कांग्रेसी, सनातनी,  तथा रूढ़िवादियों आदि ने उन्हें देशद्रोही कहकर अपमानित |

7 मई 1932 –बाबा साहेब अंबेडकर की अध्यक्षता में कामठी नागपुर में अखिल भारतीय डिप्रेस्ड कांग्रेस का अधिवेशन सम्प्पन्न हुआ |

21 मई 1932 -पुणे में अंबेडकर के सम्मान में एक बड़े जुलूस व अहिल्या आश्रम में समारोह का आयोजन किया गया।

31 मई 1932 -राजा-मुंजे समझौते के बाद अंबेडकर चिंतित। अछतों के प्रतिनिधित्व के लिए ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर व अन्य मेम्बर्स से मिलने के लिए फिर लंदन रवाना। यात्रा गुप्त रखी गई ताकि विरोधी कोई नई समस्या पैदा नहीं कर सके।

10 जुलाई 1932 -बम्बई की भांगवाड़ी क्षेत्र के एक नाटक थियेटर में एम.सी. राजा की अध्यक्षता में अछूतों की सभा में मारपीट की गई जिसमे में एक की मौत ।

17 अगस्त 1932 – बाबा साहेब अछूतों के हकों को पाने की उम्मीद के साथ लंदन से भारत लौटे आये।

20 अगस्त 1932-ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर मेंकडोनाल्‍ड ने अछूतों सहित अल्पसंख्यकों की सांप्रदायिक समस्याओं पर अपना फैसला दिया जिसे कम्युनल अवार्ड कहा जाता है। दलितों के अलावा मुसलमानों, सिखों, यूरोपियनों व ईसाईयों को दो वोट व पृथक निर्वाचन का अधिकार मिला | अंबेडकर के संघर्ष की भारी जीत।

सितम्बर 1932 -कम्युनल अवार्ड में दिए पृथक निर्वाचन में सिर्फ अछूतों के अधिकार केखिलाफ गांधीजी द्वारा 20 सितम्बर से आमरण अनशन की धमकी |

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19 सितम्बर 1932- बम्बई में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मदन मोहन मालवीय सप्रु, सावरकर, अंबेडकर सहित कई अन्य हिंदू नेताओं की सभा | समझौते के प्रयास |

20 सितम्बर 1932- कम्युनल अवार्ड के खिलाफ देश में राजनीतिक भूचाल, अखबारों का भारी विरोध, अंबेडकर के सामने भारी संकट। गांधीजी ने सिर्फ अछूतों को दिए डबल वोट द्वारा पृथक निर्वाचन का विरोध किया। यरवदा जेल में ही आमरण अनशन शुरू |

21 सितम्बर 1932- डॉ. अंबेडकर के लिए कड़े इम्तिहान की घड़ी । अछूतों के अधिकारों के लिए दृढ़, समझौते के लिए कुछ शर्ते रखी।

23 सितम्बर 1932- गांधीजी का स्वास्थ्य बिगड़ा | गांधीजी के पुत्र देवदास गांधी अंबेडकर से मिले। गांधी ने संदेश पहुंचाया 'मेरी जान आपके हाथ में है' गांधीजी के प्राण बचाने के लिए डॉ. अंबेडकर भारी भारी दबाव का सामना करना पड़ा। अंबेडकर को जान से मारने की धमकियां भी दी जाने लगी।

24 सितम्बर 1932- अछूतों के भविष्य की चिंता में पूना की यरवदा जेल में गांधी से समझौता। गांधी के प्राण बचाने के लिए पृथक की बजाय संयुक्त निर्वाचन को मजबूरन मंजूर किया। यह पूना पैक्ट के नाम से प्रसिद्ध ।

27 सितम्बर 1932- गांधी की भूख हड़ताल खत्म। ब्रिटिश सरकार ने 'पूना पैक्ट' को मान्यता दी।

8 अक्टूबर 1932- वर्ण-व्यवस्था व जातिभेद के खिलाफ हमला तेज बम्बई में विशाल सभा में कहा, मंदिर प्रवेश मुक्ति का मार्ग नहीं। सामाजिक एकता, सुधार व आर्थिक प्रगति पर जोर |

6 अक्टूबर 1932 – बाबा साहेब अम्बेडकर ने बम्बई विधान परिषद में अपने प्रभावी भाषण में कहा, “ग्राम पंचायतें भारत के सार्वजनिक जीवन के लिए बहुत ज्यादा विनाशकारी साबित हो रही है, जोकि घातक तथा एकता में बाधक है |

28 अक्टूबर 1932- जहांगीर हॉल बम्बई में ऋषि समाज की बड़ी सभा में ईश्वर व अवतारों के भरोसे की बजाय अछूतों को खुद के उद्धार के लिए खुद को ही उठ खड़े होने का आह्वान |

4 नवम्बर 1932 - बंबई में गुजराती मेघवाल समाज की सभा। आर्थिक गुलामी की जंजीरें तोड़ने का आह्वान । अच्छी आजीविका, उद्यम व रोजगार पर जोर ।

7 नवम्बर 1932 - तीसरी गोलमेज सभा, लंदन में भाग लेने के लिए बम्बई से विक्टोरिया जहाज द्वारा रवाना ।

10 नवम्बर 1932 - विक्टोरिया जहाज में एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्ति ने अंबेडकर की ओर इशारा करते हुए कहा यही वह युवा व विद्वान नेता है जो भारतीय इतिहास के नये पेज लिख रहा है।

4 नवम्बर 1932- जहाज से ही हिंदू समाज सुधारकों के लिए पत्र में लिखा कि हिंदू समाज के घृणित अमानवीय व्यवहार व रूढ़िवाद व अंधविश्वास के खिलाफ सामाजिक क्रांति जरूरी | कानून की बजाय मानसिकता में बदलाव हो |

17-24 नवम्बर 1932- तीसरी गोलमेज सभा की कार्यवाई में प्रतिनिधियों की गुटबाजी व फूट से डॉ. अंबेडकर निराश। मुस्लिम प्रतिनिधियों के कट्टर व रूढ़िवादी व्यवहार से अंबेडकर दुखी |

23 जनवरी 1933- तीसरी गोलमेज सभा में भाग लेने के बाद बम्बई लौटे | समता सैनिक दल द्वारा स्वागत। देश में राजनीतिक उथल-पुथल व सामाजिक तनाव का माहौल।

14 जनवरी 1933- गांधीजी का टेलीग्राम मिला, लिखा वह डॉ. अंबेडकर से मिलना चाहते है । वायसराय ने गोलमेज प्रतिनिधियों को दिल्‍ली बुलाया ।

4 फरवरी 1933 - गांधीजी से दूसरी मुलाकात (यरवदा जेल में) में अंबेडकर से मंदिर प्रवेश प्रस्तावों पर समर्थन मांगा | अंबेडकर ने कहा, जिस धर्म ने मुझे नीच माना उसे मैं अपना धर्म कैसे मानू ? अंबेडकर ने मंदिर प्रवेश की बजाय अछूतों के आर्थिक विकास पर जोर देने को कहा।

12 फरवरी 1933 - सुब्बारयण व रंगा अय्यर के मंदिर प्रवेश बिलों पर अपना निवेदन अखबारों में छपवाया था तथा छुआछूत व दुराचार की जनक जाति व्यवस्था को नष्ट करने की जरूरत बताई  थी|

फरवरी 1933 - मजगांव, बम्बई की सभा में कहा, आंदोलन का लक्ष्य अन्याय व अंधविश्वास के खिलाफ संघर्ष करें, उन बुराईयों को छोड़े जिनके कारण बर्बाद हुए । जिनके कारण चालाक लोग ठगते है और पतन की ओर धकेलते है।

 

24 मार्च 1933 - रंगा अय्यर का मंदिर प्रवेश बिल सेन्ट्रल असेम्बली में पेश रूढ़िवादी हिन्दुओं की मिली भगत के कारण बिल हमेशा के लिए दफना दिया गया।

मार्च 1933 - बम्बई में विशाल सभा में बाबासाहेब ने कहा, “ सभी दलितों को अपनी दासता तथा दरिद्रता खुद मिटानी है जिसके लिए किसी भी काल्पनिक ईश्वर अथवा अवतार के भरोसे मत रहना ।“

मार्च 1933 - भारत के संविधान के स्वरूप तैयार करने के सम्बन्ध में ब्रिटिश सरकार ने व्हाइट पेपर प्रकाशित किया।

अप्रैल 1933 - दूसरी गोलमेज सभा के बाद अंबेडकर भारी दुविधा में, यदि अंग्रेजों के खिलाफ होते तो अछूतों को कुछ नहीं मिलता और यदि गांधीजी से झगड़ा करते तो वे कुछ भी समर्थन नहीं करते।

2 अप्रैल 1933 – बाबा साहेब ने परेल मुंबई की सभा में कहा, “ज्ञान की भूख को शांत करने के लिए अपने पेट की भूख को मारकर अनेक ग्रंथ खरीदे |

23 अप्रैल 1933महाराष्ट पूना की यरवदा जेल में गांधीजी से मुलाकात | पूना फैक्ट को फिर से परीक्षण करने की बात की। अछूतों के चुनाव व छुआछूत निवारण विषयों पर सुखद वार्ता हुई। अंबेडकर को आगामी लंदन यात्रा की शुभकामनाए दी।

24 अप्रैल 1933 - ज्वॉइंट कमेटी के कामकाज के सिलसिले में बाबा साहेब लंदन के लिए रवाना, मई में लंदन पहुंचे। उधर भारत में पूना पैक्ट की खिलाफत तेज हो गई थी। बंगाल में रविन्द्रनाथ टैगोर भी पूना पैक्ट लागू करने के खिलाफ में |

8 मई 1933 -  जब गांधीजी ने आत्म शुद्धि के लिए अनशन शुरू किया था तब लंदन में अंबेडकर सारी घटनाओं पर पैनी नजर रखे हुए थे।

3 अक्टूबर 1933 - लंदन में सर पिंस्टन चर्चिल व विद्वान देशभक्त डॉ. अंबेडकर के बीच चर्चा में तीखी नोंक-झोंक | चर्चिल सहित ब्रिटिश राजनेताओं की बोलती बंद।

6 अक्टूबर 1933- ज्वॉइंट कमेटी ऑन इंडियन कॉस्टिट्यूशनल रिफार्म में विधानसभा व परिषद्‌ में आदिवासियों के प्रतिनिधित्व की मांग का समर्थन तथा दलितों व आदिवासियों का संयुक्त मोर्चा बनाने की मांग की ।

नवम्बर 1933 - ज्वॉइंट कमेटी ने अपना काम पूरा किया। संविधान लिखने के लिए छोटी कमेटी बनाई | अंबेडकर लंदन में कुछ दिन और रूके |

8 जनवरी 1934 - विक्टोरिया जहाज द्वारा लंदन से बम्बई पहुंचे | लंदन दौरे से प्रसन्‍न।कहा, “राजनीति में अब मेरी कोई विशेष रूचि नहीं है।

जनवरी 1934 - 1930 से 1934 तक शोषितों के मानवीय अधिकार के लिए देश-विदेश में शारीरिक व मानसिक संघर्ष। स्वास्थ्य में गिरावट, डायबिटीज के साथ आंखों की रोशनी भी कम हुई ।

1932-1934 - भारतीय संवैधानिक सुधार के लिए ज्वांइट पार्लियामेन्द्री कमेटी (लेथियन कमेटी) के मेम्बर रहे ।

मई 1934 - स्वास्थ्य लाभ के लिए बोर्डी, फिर समुद्र किनारे महाबलेश्वर में कुछ दिन तक आराम किया |उसके बाद कोल्हापुर के पास पन्हालगढ़ भी गये।

जुलाई 1934 - कांग्रेस ने कम्युनल अवार्ड का विरोध किया लेकिन मुस्लिम लीग अवार्ड के तहत अधिकार चाहती थी तो कांग्रेस ने कहा कांग्रेस कम्युनल अवार्ड को न स्वीकार करती है और न ही रध करती है।

अक्टूबर 1934 - परेल के दामोदर हॉल को छोड़कर दादर स्थित हिंदू कॉलोनी में

बनाए भवन 'राजगृह' में आ गए | विशाल पुस्तकालय की स्थापना।

19 दिसम्बर 1934- ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारतीय संविधान का इंडिया बिल पेश किया गया। ज्वांइट कमेटी की रिपोर्ट प्रकाशित। अंबेडकर ने विरोध कर बताया यह पूना पैक्ट के उद्देश्य के खिलाफ है।

दिसम्बर 1934 - अछूतों के अधिकारों के प्रति पूरी तरह सजग । हर अगले कदम की जानकारी लेकर तुरंत सक्रिय हो जाते थे।

1935- हिल्टन यंग कमीशन के सामने बाबा साहेब ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कार्य योजना पेश की जिसके आधार पर ही भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई।

27 मई 1935- बाबासाहेब के जीवन में दुखो ने उनका पीछा कभी नही छोड़ा| उनकी पत्नी रमाबाई सभी को रोता बिलखता छोडकर इस दुनिया से हमेशा के लिए चली गई | बाबा साहेब को इस बात का बहुत दुःख था कि वह रमाबाई को कष्टों के अलावा कुछ नही डे पाए |

मई 1935- रमाबाई के वियोग में जीवन से वैराग्य, बाल मुंडवाए, गेरूए वस्त्र पहनकर सप्ताह भर तक स्वयं को एकांत में बंद किया।

2 जून 1935- बम्बई सरकार ने सरकारी लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल पद पर नियुक्त किया। सरकार द्वारा हाईकोर्ट के जज बनाए जाने का समाचार। अंबेडकर ने कहा, जज तो क्या मुझे वायसराय बनाने का भी ऑफर दिया जाता तो मैं इन्कार करता क्‍योंकि मेरे सामने करोड़ों अछूतों के भविष्य का सवाल था, मेरा अपना नहीं ।

13 अक्टूबर 1935- महाराष्ट्र के नासिक जिले के येवला में अछूतो का विशाल सम्मलेन हुआ जिसमे करीबन 10 हजार महिला तथा पुरुषों ने भाग लिए | जिसमे बाबा साहेब ने कहा, “दुर्भाग्य से मैं हिन्दू धर्म में पैदा जरुर हुआ  जोकि मेरे वश की बात नहीं थी परन्तु हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं यह मेरे हाथ में है |”

नवम्बर 1935 - धर्म परिवर्तन की घोषणा से देश में तहलका मच गया। हिंदू नेताओं ने दुख जताया, आलोचना की | अन्य धर्म के नेताओं ने बधाईयां दी।

दिसंबर 1935 - धर्म परिवर्तन घोषणा के बाद बाबा साहेब अंबेडकर को मारने की साजिश व धमकियां शुरू हो गई | एक व्यक्ति ने खून से लिखे पत्र में धमकी लिखा कि, “ यदि तुमने हिंदू धर्मं का त्याग किया तो मै तुम्हे जान से मार दूँगा ।“

13 जनवरी 1936- पूना में अस्पृश्य युवक परिषद की ओर से आयोजित सभा में बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने फिर कहा, “ यदि स्वयं ईश्वर या सभी देवी देवता भी आकार मुझसे कहे कि हिंदू धर्म मत छोड़ो, तब भी मै इस नरक जैसे धर्म में  नही रहूँगा |”

 

जनवरी 1936 - डॉ. अंबेडकर के प्रशसंक, लेखक, समाज सुघारक व जात-पांत तोड़क मंडल लाहौर के संतराम बी.ए के प्रयासों से मंडल के वार्षिक सम्मेलन में अंबेडकर को अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया। रूढ़िवादी हिंदुओं ने मंडल की निंदा की | सम्मेलन मई 49 में होना था।

फरवरी 1936 - लाहौर के डॉ. गोकुलदास नारंग ने बाबासाहेब को लिखा कि लाहौर यात्रा के समय वह उनके मेहमान बने |

9 अप्रैल 1936 - संतराम बी.ए. ने हरभगवान को बाबासाहेब से व्यक्तिगत रूपसे निवेदन करने के लिए बम्बई भेजा गया ।

11-13 अप्रैल 1936 - सिख धर्म के प्रति झुकाव | सिख धर्म के बड़े समारोह सिख मिशनरी कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए अमृतसर गये। स्वर्ण मंदिर में भव्य स्वागत । ईसाई व मुस्लिम नेताओं द्वारा दिए जाने वाले आर्थिक लोभ के प्रस्ताव को ठुकराया | कहा, ” मैं अपने लोगों को बचाने के लिए हूं बेचने के लिए नहीं।

22 अप्रैल 1936- बाबा साहेब अम्बेडकर के अध्यक्षीय भाषण पर जात-पात तोडक मंडल के लोगोने ऐतराज जताया और इसे बदलने के लिए कहा तो बाबा साहेब ने पत्र में लिखाभाषण में सुधार तो दूर एक कॉमा भी नहीं हटाया जाएगा ।आखिर सम्मेलन रद्द कर दिया। अंबेडकर ने अपने भाषण को ' Annihilation of Caste’  (जाति का विनाश) नामक पुस्तिका के रूप में छापा।

30--31 मई 1936- दादर, बम्बई में महार जाति का सम्मेलन। मंच पर सिख मुस्लिम व ईसाई धर्म के नेता भी मौजूद | बाबासाहेब ने कहा, “धर्म मनुष्य के लिए है मनुष्य धर्म के लिए नहीं और जो धर्म तुम्हे नीच समझता है वह धर्म नहीं, गुलाम बनाए रखने की साजिश है।

जनू 1936 – बाबा साहेब के धर्म परिवर्तन की घोषणा के बाद हिन्दुवादी नेता बाबा साहेब को गलियां डे रहे थे जबकि अन्य धर्म के लोग अछूत लोगों को गले लगाने का भरोसा दे रहे थे तथा निरंतर संपर्क व आर्थिक सहायता देने के प्रस्ताव भेज रहे थे | 

10 जून 1936 – इटालियन भिक्षु लोकनाथ दादर के राजगृह में बाबा साहेब अम्बेडकर से मिलने आये |

15 अगस्त 1936 - स्वंत्रत मजदूर दल (Independent Labour Party) का गठन। गरीब, किसानों, मजदूरों के हितों की रक्षा व समस्याओं का समाधान का उद्देश्य था |


11 नवम्बर 1936 - यूरोप यात्रा। विएना, लंदन, जेनेवा, व बर्लिन में रहे। उद्देश्य था अछूतों के अधिकारों के लिए ब्रिटिश अधिकारियों से चर्चा करना। सप्ताह भर लंदन में रहे ।

4 जनवरी 1937- यूरोप यात्रा के बाद भारत लौटे। एक अफवाह के बाद बंबई बंदरगाह पर हजारों की भीड़ विदेशी पत्नी को देखने आए। बाबासाहेब ने दूसरे विवाह का खंडन किया।

15 जनवरी 1937- भारत आते ही बम्बई विधान सभा के आम चुनाव में पार्टी के प्रचार के अभियान में लगे | बंबई प्रांत का सघन दौरा।

17 फरवरी 1937 - चुनाव सम्पन्न | अंबेडकर की लेबर पार्टी के 17 में से 45 उम्मीदवार चुनाव जीते | बाबासाहब भारी वोटों से जीते। महाराष्ट्र के दलितों में अपार खुशी की लहर।

17 फरवरी 1937 - बाबासाहेब बम्बई लेजिस्टिव काउंसिल के मेम्बर बने ।

17 मार्च 1937  - बम्बई हाईकोर्ट ने दस साल से चल रहे महाड़ तालाब के केस का फैसला अछूतों के पक्ष में दिया। 19 मार्च 1927 को महाड़ सत्याग्रह शुरू हुआ था।

19 जुलाई 1937 - बम्बई विधानसभा में कांग्रेस की सरकार बनी। नये मंत्रिमंडल में एक भी दलित मंत्री नहीं था।

31 जुलाई 1937 - एक मुकदमे के सिलसिले मे धुलिया (महाराष्ट्र) गये। गरीबों, सामाजिक आंदोलन व अत्याचारों से संबंधित मुकदमों की पैरवी के लिए अक्सर उनहें बाहर जाना पड़ता था।

7 अगस्त 1937 - इंडिपेन्डेन्ट लेबर पार्टी की नागपाड़ा बम्बई में बैठक में इस बात की जरूरत बताई कि हर मंत्रिमंडल में दलित मंत्री जरूर होना चाहिए, गोलमेज कॉन्फ्रेंस में यह मांग रखना वे भूल गये थे।

23 अगस्त 1937 - बम्बई विधानसभा में वेतन संबंधी बिल पेश, सदस्यों का वेतन भत्ता कई गुना बढ़ाया | अंबेडकर ने देश के आम व्यक्ति के जीवन स्तर का हवाला देते हुए वेतन भत्ता बढ़ाने का विरोध किया।

17 सितम्बर 1937- बम्बई विधानसभा में पुणे सत्र में कोंकण क्षेत्र में प्रचलित बेगारी की खेती प्रथा को बंद करने का बिल पेश किया। खेतों पर खेती करने वाले किसानों को मालिकाना हक की मांग की।

20 सितम्बर 1937- 'महार वतन' कुप्रथा को बंद कराने का बिल पेश किया जिसके लिए 1927 से आंदोलन चला रहे थे | 1959 में यह कुप्रथा बंद हुई।

अक्टूबर 1937 - मनमाड़ में रेलवे के अछूत मजदूरों की सभा में कहा, “ ब्राह्मणवाद व पूंजीवाद, ये दोनों मजदूरों के दुश्मन है क्योंकि दोनों समता, स्वतंत्रता व बंधुत्व के खिलाफ है।

नवम्बर 1937 – बम्बई के आदि द्रविड़ तरूण संघके कुछ अछूत युवकों द्वारा बाबासाहेब का सम्मान किया गया।

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नवम्बर 1937 लेबर पार्टी का समारोह। नासिक के नेता भाऊराव गायकवाड़ को अछूतों के आंदोलनों में संघर्ष के लिए सम्मानित किया गया।

1 जनवरी 1938 - शोलापुर जिले के पंढरपुर में दलित समाज के सम्मेलन में शामिल। करकेब गांव में संत समाज की सभा में कहा, कांग्रेस से सावधान रहो, क्योंकि शोषण, छल और खून चूसने वाले लोगों के साथ कांग्रेस ने समझौता किया है। याद रखो खादी के कपड़े व खादी की टोपी पहनकर ये लोग हमारे कल्याण का ढोंग रच रहे है।

4 जनवरी 1938 - शोलापुर में मातंग समाज के सम्मेलन में कहा, देश के बुरे राजनीतिक हालात को देखते हुए यहां थोड़े समय के लिए कठोर, दृढ़ व ज्ञानवान शासक की जरूरत है। यहां ढोंगी नेताओं के पीछे लोग अंधे होकर भेड़-बकरियों की तरह भागते है।

जनवरी 1938 - बम्बई में किसानों की विभिन्‍न समस्याओं को लेकर महाराष्ट्र के हजारों किसानों का बम्बई विधानसभा के बाहर विशाल मोर्चे का आयोजन | अंबेडकर मजदूर नेता के रूप में उभरे। किसानों, मजदूरों का अंबेडकर के प्रति सम्मान बढ़ा।

12-13 फरवरी 1938- मनमाड़ में बीस हजार रेल मजदूरों की विशाल सभा। सभी मेहनतकश मजदूरों व किसानों को अपने मानवीय अधिकारों के लिए संगठित होकर संघर्ष करने का आहवान।

19 मार्च 1938 - ताड़वाड़ी में सम्मान समारोह आयोजित। थैली भेंट की गई। लेबर पार्टी से जुड़कर गरीब, किसान, मजदूर के हितों के संघर्ष में भागीदार बनने का आहवान।

अप्रैल 1938 - बम्बई विधान सभा में बम्बई से कर्नाटक को अलग कर स्वतंत्र राज्य का दर्जा देने की मांग पर बहस | अंबेडकर ने विरोध में कहा जातीय विभाजन देश के लिए घातक है सभी भारतीय यह भावना पैदा करें कि हम सब भारतीय है अलग प्रांत का गर्व व भक्ति अपराध है।

मई 1938 - सतनामी गुरू के एक मुकदमे की पैरवी के लिए नागपुर गए। दूसरे दिन कामटी गांव में विद्यार्थियों की सभा में मार्गदर्शन भाषण दिया ।

मई 1938 - लॉ कॉलेज के सम्मानित प्रिंसिपल पद से इस्तीफा दिया। सामाजिक व राजनीतिक गतिविधियों में सक्रियता के कारण ऐसा करना पड़ा। कॉलेज पत्रिका ने बाबासाहेब की विद्वता व योग्यता को सराहा व उत्कृष्ट सेवाओं की प्रशंसा की |

सितम्बर 1938 - इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट बिल महाराष्ट्र विधानसभा में पेश किया अंबेडकर ने विरोध में कहा, बिल में मजदूरों द्वारा हड़ताल करने को गैरकानूनी ठहराया गया था। अंबेडकर ने कहा बिल खून के धब्बों से भरा हुआ है | व्यक्ति की इच्छा के खिलाफ काम करवाना गुलामी है।

7 नवम्बर 1938- बम्बई के कामगार मैदान में मजदूरों की विशाल सभा में लगभग अस्सी हजार मजदूर शामिल हुए | कांग्रेस की मजदूर विरोधी नितियों की निंदा की | अंबेडकर, जमनादास मेहता, डांगे व अन्य ने संबोधित किया | शहर की सभी मिलें उस दिन बंद रही | मजदूर नेता के रूप में अंबेडकर की ख्याति फैली, विरोधियों में ईर्ष्या |

नवम्बर 1938 - अंबेडकर की मजदूर किसानों में बढ़ती लोकप्रियता देखकर संयुक्त उत्तर प्रदेश के किसान नेता स्वामी सहजानंद बम्बई में अंबेडकर के निवास पर मिले। कांग्रेस ने शामिल होने की राय दी। अंबेडकर ने कहा कांग्रेस तो खुद पूंजीवाद व ब्राह्मणवाद की पोषक है मजदूरों किसानों का विरोधी है।

दिसम्बर 1938- हैदराबाद रियासत के औरंगाबाद में दलित परिषद का पहला सम्मेलन। आत्म निर्भर बनने का संदेश दिया तथा धर्म परिवर्तन के महत्व को बताया।

जनवरी 1939- ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को सत्ता में अधिक भागीदारी के देने के लिए फैडरल स्कीम पेश की | हिंदू महासभा इसे लागू करवाने के पक्ष में, कांग्रेस अध्यक्ष सुभाषचन्द्र बोस, अंबेडकर विरोध में |

29 जनवरी 1939- गोखले स्कूल ऑफ पालिटिक्स एंड इकोनोमिक्स, पूना में आयोजित सभा में 'फेडरेशन वर्सेज फ्रीडम' विषय पर बोलते हुए कहा, फैडरल स्कीम देश की आजादी के मार्ग में बाधक होगी।

6 फरवरी 1939- बड़ौदा महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ का निधन। अंबेडकर को व्यक्तिगत बहुत दुख हुआ |

फरवरी 1939- गुजरात की राजकोट रियासत में राजनितिक सुधार के लिए एक जोरदार आन्दोलन की शुरुआत की गई  |

फरवरी 1939- कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सुभाष चंद्र बोस को चुन लेने के कारण गांधीजी नाराज।

18 अप्रैल 1939- डॉ. अंबेडकर राजकोट पहुंचे। राजकोट रियासत में राजनीतिक सुधार के लिए बनाई कमेटी में अछूतों के प्रतिनिधि की मांग। राजकोट के राजा से मुलाकात | गांधीजी से भी मिले।

जुलाई 1939- परेल बम्बई में रोहिदास शिक्षण समिति की सभा में सभी अछूत जातियों को आपसी भेदभाव मिटाकर अधिकारों के लिए संघर्ष करने का आह्वान किया।

सितम्बर 1939- कांग्रेस नेताओं ने वर्ल्ड वॉर के संबंध में अपनी नीति बदलकर बिल्कुल उलट दी कांग्रेस के दुलमुल व्यवहार से अंबेडकर असहमत।

अक्टूबर 1939 - तीसरे सप्ताह में बम्बई में अंबेडकर व नेहरू की भेंट हुई। दो दिन चर्चा हुई | दोनों की यह पहली मुलाकात थी।

अक्टूबर 1939 - बम्बई विधानसभा में वर्ल्ड वॉर विषयक प्रस्ताव पेश किया। अंबेडकर ने कहा, “मेरे व देश के हितों में देश के हितों को प्राथमिकता दूंगा लेकिन देश व दलितों के हितों के बीच संघर्ष होगा तो मैं दलितों के हितों को प्राथमिकता दूंगा।

अक्टूबर 1939 - सेंकड वर्ल्ड वॉर से उपजे संकट पर चर्चा के लिए गवर्नर जनरल लार्ड लिनलिथगो की अंबेडकर के साथ चर्चा में शिकायत की कि पूना पैक्ट ईमानदारी से लागू नहीं किया गया। 52 प्रमुख भारतीय नेताओं से मुलाकात ।

25 अक्टूबर 1939- बम्बई विधानसभा में कांग्रेस ने प्रस्ताव पास कर सेंकड वर्ल्ड वार में भारतीयों की अनुमति के बिना झोंक देने की निंदा की गई । अंबेडकर ने कहा भारत की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीयों की ही होनी चाहिए, नकि ब्रिटेन की ।

31 अक्टूबर 1939- बम्बई विधानसभा के अधिवेशन के आखरी दिन कांग्रेस ने 'हरिजन बिल' पेश किया। विरोध में आर.आर. भोले ने कहा, “राजा इतना दयालु हुआ कि उसने हमारे हाथों में कड़वा तंबू दे दिया और वह भी फूटा हुआ।

3 नवम्बर 1939 - बंबई विधानसभा भंग कर दी गई इसके साथ ही बाबासाहेब की विधानसभा की मेम्बरशिप भी खत्म हो गई।

जनवरी 1940 - देश में राजनीतिक संकट बढ़ता जा रहा था।

19 मार्च 940 - महाड़ में आयोजित समारोह में शामिल। सत्याग्रह की जीत पर आयोजित दस हजार लोगों की सभा में कहा, सारी ताकत राजनीतिक सत्ता को हासिल करने के लिए झोंकी जा रही है जो गलत है आर्थिक समृद्धि के बिना हमारा उद्धार नहीं।

अप्रैल 1940 - कांग्रेस ने देश के बंटवारे के विचार की निंदा की। जिन्‍ना ने कड़ा रूख अपनाया, मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग। अंबेडकर सारी घटनाओं पर बारीकी से नजर रखते हुए पूरी तरह सचेत |

मई 1940 - सेंकड वर्ल्ड वॉर तेजी से आग पकड़ता जा रहा था। हिटलर ने यूरोप के छोटे देशों पर कब्जा किया। कांग्रेस ने शर्त के आधार पर ब्रिटिश सरकार को युद्ध में सहयोग का भरोसा किया।

मई 1940 - कांग्रेस पार्टी में घमासान | सुभाषचंद बोस अध्यक्ष पद से हटाए जाने पर नाराज |

22 जून 1940 – सुभाष चन्द्र बोस की अंबेडकर से मुलाकात। बोस ने कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने से मना किया। अछूतों की समस्याओं पर भी कोई ठोस जवाब नहीं मिलने पर दो महान देश भक्तों की वैचारिक यात्रा आगे नहीं बढ़ पाई ।

जुलाई 1940 - ब्रिटेन का पूरा ध्यान विश्व युद्ध की तरफ, वह उसमें बुरी तरह उलझ गया था। कांग्रेस ने युद्ध में भाग लेने का विरोध किया। कांग्रेस के कई नेता गिरफ्तार। अंबेडकर ने कांग्रेस की दुलमुल नीति की आलोचना की |

दिसम्बर 1940 -थॉट्स ऑन पाकिस्तान' (पाकिस्तान पर विचार) नामक विचारपूर्ण किताब का प्रकाशन। देश में धर्म के आधार पर बंटवारे की मांग के दौर में इस किताब से राजनीतिक क्षेत्र मे जोरदार हलचल, मानो विस्फोट सा हो गया भविष्य में देश की शांति के लिए कड़वी लेकिन खरी बातें लिखी | धर्म के नाम पर भारत में फैल रही विकराल बीमारी का वैद्य की तरह इलाज बताया।

1940 – थोट्स ऑन पाकिस्तान के तीन संस्करणों के बाद में इसका नाम ‘पाकिस्तान का विभाजन ‘ रख दिया गया | इस पुस्तक की समीक्षा में टाइम्स आफ इण्डिया ने लिखा,  पाकिस्तान के नाम पर डॉ. अंबेडकर ने भारत की सारी समस्याओं पर विद्वता से चर्चा की । पाकिस्तान जैसे मुश्किल और गंभीर विषय पर जिस सच्चाई और योग्यता के साथ बाबा साहेब अम्बेडकर ने इस किताब जो चर्चा की है , वह सिर्फ वही कर सकते थे दूसरा नही |”

1941- सैंकड वर्ल्ड वॉर का घमासान अधिक तेज हुआ, ब्रिटिश सरकार का सारा ध्यान युद्ध जीतने की ओर। वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने अंबेडकर को डिफेंस एडवाइजरी कमेटी का मेम्बर बनाया।

अगस्त 1941- अछूतों की बेगारी प्रथा, अछूतों पर ज्यादा टैक्स की मार आदि कई जायज मांगों पर बम्बई सरकार द्वारा ध्यान नहीं देने पर सिन्नर में विशाल सभा। वायसराय लिनलिथगो ने बम्बई के गवर्नर को डांट लगाई । अगले दिन अछूतों पर ज्यादा टैक्स के आदेश वापस |

सितम्बर 1941-“हिंदुओं ने हमारे साथ क्‍या बर्ताव कियानामक किताब का लेखनशुरू किया। जो बाद में 1945 में दूसरे नाम से छपी।

फरवरी 1942- बम्बई में थॉट्स ऑन पाकिस्तानपर तीन दिन तक चर्चा। अंबेडकर ने कहा, जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती वह भविष्य का निर्माण नहीं कर सकती |

1942- वायसराय लिनलिथगो से शिक्षा के क्षेत्र में प्रचार पर चर्चा में कहा, क्या मैं 500 ग्रेजुएट्स के बराबर नहीं हूं ? वायसराय ने कहा, हां, आपमें यह प्रतिभा है।

मार्च  1942- भारत की राजनीतिक समस्या के समाधान के लिए व आजादी के सम्बन्ध में स्टेंफर्ड क्रिप्स योजना के साथ भारत आए।

30 मार्च 1942- बाबा साहेब अम्बेडकर तथा एम. सी. राजा सर क्रिप्स से जाकर मिले| क्रिप्स की योजना के अनुसार वर्ल्ड वार की समाप्ति के बाद भारत का संविधान बनाया जाये |

14 अप्रैल 1942- वंचितों के बेताज बादशाह बाबासाहेब का जन्मदिन देशभर में सप्ताह भर तक गोष्ठियों, सभाओं, जुलूसों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के द्वारा धुमधाम से मनाया।

19 अप्रैल 1942- जन्मदिन समारोह का मुख्य कार्यक्रम बम्बई की चौपाटी पर। आचार्य दोंदे, जयकर, गुरू एन.एम. जोशी, बम्बई शेरीफ बेग ने गुणगान किया | अंबेडकर को 580 रू की थैली भेंट।

21 अप्रैल 1942- देश भर के सभी प्रमुख अखवारो ने डॉ. अम्बेडकर की निस्वार्थ सेवा तथा त्याग व प्रतिभा की शराहना की |

25 जून 1942- भारत के वायसराय ने अपनी एग्जिक्युटिव कॉसिल में मेम्बर्स की संख्या बढ़ाने का फैसला किया।

2 जुलाई 1942- भारत के वायसराय ने अपनी एग्जिक्युटिव कौंसिल में अंबेडकर को शामिल किया, लेबर मिनिस्टर का कार्यभार सौंपा। इसके अलावा पीडब्ल्यूडी व माइन्स डिपार्टमेन्ट भी दिये। इस गौरवशाली नियुक्ति पर देश विदेश से ढ़ेरों बधाई संदेश |

5 जुलाई 1942को नेशनल डिफेन्स कांसिल की मीटिंग में भाग लेने के लिए बम्बई से दिल्‍ली पहुंचे।

15 जुलाई 1942 – रेडियो क्लब मुंबई में दोस्तों व शुभचिन्तको ने डॉ. अम्बेडकर के यशोगान में शानदार दावत का आयोजन किया।

18-19 जुलाई 1942- ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास की ओर से नागपुर के मॉल पार्क में विशाल सम्मेलन का आयोजन । भाषण के आखिर में शिक्षा, संगठन व संघर्ष का संदेश दिया | यही 3 सन्देश आजतक हमारी प्रेरणा का श्रोत बने हुए है|

19 जुलाई 1942 - ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की स्थापना।

19 जुलाई 1942 - नागपुर में दलित वर्ग की महिलाओं के सम्मेलन में कहा कि समाज की प्रगति का आइना महिलाओं की दशा होती है।

20 जुलाई 1942 - सेकण्ड वर्ल्ड वॉर का घमासान जारी, ब्रिटेन मुश्किल में था। भारत में कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पास किया।

27 जुलाई 1942 –दिल्ली में टाइम्स आफ इण्डिया के साथ एक इंटरव्यू में डॉ. अम्बेडकर ने कहा , कि राष्ट्रिय संकट के इस बकत में काग्रेस द्वारा चलाये जा रहा असहयोग आन्दोलन कानून व्यवस्था को कमजोर कर रहा है , जोकि देशद्रोह जैसा है |

8 अगस्त 1942 - आखिर कांग्रेस का भारत छोड़ो आंदोलन शुरू। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ देश में उग्र व हिंसक घटनाएं | कई बड़े नेता गिरफ्तार ।

23 अगस्त 1942 – दलितवर्ग हितकारिणी मंडल  दिल्ली के द्वारा बाबा साहेब अम्बेडकर के सम्मान किया गया | जहा उन्होंने कहा , मुझे सत्ता का मोह नही है , यदि साधारण जनता कि दशा को सुधारने कि मेरी कोशिश कामयाब नही हुई तो मै इस्तीफा देकर वापस मुंबई आ जाऊंगा |

अगस्त 1942 - धार्मिक कट्टरपंथी, सामाजिक व राजनीतिक विरोधियों द्वारा बाबासाहेब को जान से माने की धमकियां, व्यक्तिगत व पारिवारिक सुरक्षा संकट में ।

4 सितम्बर 1942 - अपने मित्र एम.बी. समर्थ को एक चिट्‌ठी में उनकी हत्या के धमकीभरे पत्रों का जिक्र किया।

अक्टूबर 1942 - 1941 की जनगणना में दलितों की संख्या 6 करोड़ थी। अंबेडकर ने सरकार से राजनीतिक शैक्षणिक, ठेका व अन्य क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने का अनुरोध किया।

29 अक्टूबर 1942- वायसराय को लिखे गोपनीय पत्र में फिर याद दिलाया कि किस तरह अछूतों को सरकारी नौकरियों में एक साजिश के तहत वंचित रखा जा रहा है तथा सवर्ण लोग नौकरियों पर साँप की तरह कुंडली मारकर बैठे हुए है |

13 नवम्बर 1942- लेबर मिनिस्टर अंबेडकर की वार्ता भारतीय मंजदूर और विश्वयुद्धऑल इंडिया रेडिया बंबई से टेलिकास्ट हुई। स्वतंत्रता, लोकतंत्र व नये समाज के निर्माण का आहवान।

दिसम्बर 1942 – वर्ल्ड वार का घमासान जारी था | जापान ने ब्रिटेन को हारा दिया , ब्रिटिश सरकार का सूरज डूबता जा रहा था|

दिसम्बर 1942 - क्यूबेक कनाड़ा में आयोजित कॉन्फ्रेंस में अंबेडकर जा नहीं पाए तो अपने सहयोगी एन. शिवराज को भेजकर लेख पढ़वाया। विषय था गांधी और अछूत समाज का कल्याण” | लेख में समता, स्वतंत्रता व बंधुत्व के विरोधी धर्म को नकारा।

17 जनवरी 1943- सूरत के लोगो कि सिबिल पयोनीर रैली में सैन्य शिक्षा पर जोर दिया।

19 जनवरी 4943- समाज सुधारक गोविंद रानाडे के जन्म शताब्दी समारोह के तहत पुणे में एक बड़ी सभा में नेताओं के गुण, पत्रकारिता आदि पर लंबा भाषण दिया। यही भाषण रानाडे, गांधी और जिन्‍नाके नाम से किताब के रूप में छपा और खूब चर्चित रहा ।

जनवरी 1943 - जल्दबाजी व बिना सोचे समझे शुरू किया कांग्रेस का भारत छोड़ो आंदोलन कुछ सप्ताह की तोड़फोड़, विद्रोह, हिंसा व अराजकता के बाद समाप्त हो गया।

10 फरवरी 1943 - भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के अनुभव कहते हुए गांधीजी ने पुणे के आगा खां महल में 2। दिन का उपवास शुरू किया।

4 अप्रैल 1943 - 51 वें जन्मदिन पर भाषण में कानून विशेषज्ञ चिमनलाल सीतलवाड़ ने बाबासाहेब की बुद्धिमता, साहस और धैर्य की प्रशंसा की |

1 मई 1943 - लेबर मिनिस्टर के रूप में रात दिन मजदूरों के कल्याण की योजनाएं व कानून के जरिए सुविधाएं दिलाने में व्यस्त | देश में जगह-जगह दौरें।

7 मई 1943 - अंबेडकर की अध्यक्षता में स्टेंडिंग लेबर कमेटी की मीटिंग। मजदूरों के हक मे कई फैसले लिए। देश में एम्प्लायमेंट ऑफिस की स्थापना का फैसला।

10 मई 1943 - इंडियन फेडरेशन ऑफ लेबर की बंबई शाखा ने अंबेडकर के सम्मान में समारोह रखा। कहा, भारत में मजदूरों में एकता नहीं होने के कारण शोषण के शिकार।

10 मई 1943 - बम्बई में महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स की ओर से रखे कार्यक्रम में युद्ध की बजाय आर्थिक व औद्योगिक प्रगति पर जोर ।

जून 1943 - देश में गंभीर राजनीतिक संकट। देश की ज्वलंत राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए अंबेडकर ने एक ठोस योजना पेश की ।

अगस्त 1943 - वायसराय की मांगों पर विचार कर सरकारी नौकरियों में साढ़े आठ प्रतिशत सीटें आरक्षित रखने का फैसला किया। सेन्‍्ट्रल व स्टेट असेम्बली में भी सीटें दी गई।

6,7 सितंबर 1943- स्टेडिंग लेबर कमेटी की मीटिंग में मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए  योजनाबद्ध नीति अपनाने पर जोर | धनबाद की कोयला खदानों का दौरा।

7 सितम्बर 1943- दिल्ली में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन की ओर से आयोजित मजदूरों की विशाल सभा में मजदूरों को सांप्रदायिक व पूंजीवाद शक्तियों से दूर रहने का आहवान।

 

8 दिसम्बर 1943 - परेल, बम्बई में आयोजित सभा में कहा अछूतों को सिर्फ सुविधाएं नहीं बल्कि सत्ता की ओर भी कुच करना है।

29 जनवरी 1943- कानपुर में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के सालाना सम्मेलन में कहा सरकार में हिंदुओं व मुसलमानों की तरह दलितों को भी उनकी जनसंख्या के अनुपात में हिस्सा मिले। युवाओं को तकनीकी व हायर एजुकेशन की सुविधाओं का लाभ उठाने का आहवान।

26 जनवरी 1944- लखनऊ में स्टेंडिंग लेबर कमेटी की मीटिंग में भाग लिया।

7 फरवरी 1944 -- वायसराय की एग्जिक्युटिव कौंसिल की मीटिंग में सुझाव दिया कि मुद्रास्फिति को रोकने के लिए अधिक करेंसी के नोट जारी करना बंद किए जाए तथा भारतीय प्रशासन सेवा और सेना में अंग्रेजों की बजाय भारतीयों को भर्ती किया जए।

17 फरवरी 1944 - गांधीजी -व जिन्‍ना की मुलाकात ।

अप्रैल 1944 - सेंट्रल असेम्बली में बिल पास। स्थायी कारखानों व फैक्ट्रियों के मजदूरों को छुट्टियों के दिनों मे भी वेतन देने का प्रावधान।

अप्रैल 1944 - गांधीजी को स्वास्थ्य कारणों से पूना के आगा खां महल से नजरबंदी से रिहा किया गया | जिन्‍ना से मिलने के लिए बम्बई गए।

जून 1944 - शिमला अधिवेशन में भाग लिया।

जुलाई 1944 - अंबेडकर ने गांधीजी को पत्र लिखा कि मुस्लिमों की तरह सवर्ण हिंदुओं व अछूतों के मुद्दों के समाधान निकाला जाए।

6 अगस्त 1944 - अंबेडकर के विचारों की गांधीजी द्वारा उपेक्षा। पत्र में लिखा कि अछूतों का मुधा एक धार्मिक व सामाजिक सुधार का प्रश्न है।

अगस्त 1944 - कलकत्ता में दलित वर्ग के विभिन्‍न संगठनों द्वारा स्वागत समारोह में कहा, विश्व युद्ध खत्म हो रहा है, भारत जल्दी ही आजाद होगा इसलिए अब एकता व संगठन की जरूरत है।

20 सितम्बर 1944- हैदराबाद में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की सभा में कहा, अछूतों को भी आजादी प्यारी है लेकिन हमें देश की आजादी के साथ अछूतों की भी आजादी चाहिए।

24 सितम्बर 1944- मद्रास में डिप्रेस्ड क्लासेज क्रिश्चियन एसोसिएशन के प्रतिनिधि मंडल ने दलित ईसाईयों के साथ उच्च जाति के ईसाईयों द्वारा भेदभाव व छुआछूत की दास्तान बताई।

22 सितम्बर 1944- मद्रास नगर निगम व आंध्रा चैम्बर ऑफ कॉमर्स द्वारा अंबेडकर के सम्मान में समारोह आयोजित।

23 सितम्बर 1944- मद्रास में सदर्न मराठा रेलवे के गैरदलित व दलित वर्ग के रेल कर्मचारियों ने लेबर मिनिस्टर अंबेडकर का सम्मान किया। मजदूरों को अपनी गरीबी मिटाने का आहवान।

25 सितम्बर 1944- मद्रास के पार्क टाऊन के मेमोरियल हॉल में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन व बुद्धिस्ट ऐसोसिएशन ने अंबेडकर को सम्मान पत्र अर्पित किए।

25 सितम्बर 1944- जस्टिस पार्टी के द्रविड़ नेता रामास्वामी नायकर पेरियार के साथविभिन्‍न समस्याओं के बारे में विस्तृत चर्चा |

27 अक्टूबर 1944- मजदूर वर्ग का त्रिपक्षीय सम्मेलन आयोजित। मजदूरों के कल्याण के लिए कई सुझाव व योजनाएं पेश की । अलग सचिवालय की मांग।

8 नवम्बर 1944 - सरकारी व सामाजिक सभाओं में मजदूरों, शोषितों, दलितों व महिलाओं के हकों के लिए साहस व निडरता से पैरवी की | वायसराय वेवल ने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट से शिकायत की कि अंबेडकर सरकार के भी खिलाफ बोल देते है लेकिन साहसी अंबेडकर डटे रहे ।

29 नवम्बर 1944 - पुणे में राजभोज द्वारा अंबेडकर के सम्मान में समारोह आयोजित। हिंदू धर्म शास्त्रों को अछूतों को गुलाम बनाए रखने की साजिश बताया। हिंदू भड़के तो बाबासाहेब ने बौद्विक स्तर पर करारा जवाब दिया।

2 जनवरी 1945 - कलकत्ता में अखिल भारतीय अछूत विद्यार्थी सम्मेलन आयोजित। विद्यार्थियों को आह्वान किया कि वे पढ़ाई के दौरान राजनीति में शामिल न हो |

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