दलित
समाज के ज्यादातर लोगो को बाबासाहेब के बारे पूरी जानकारी नही है | इसी बात को
ध्यान में रखते हुए इस लेख में हम भारत रत्न बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के
जीवन में घटित महत्वपूर्ण घटनाओ के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे | जानेगे की कब क्या हुआ ? इस लेख को लिखने में
पूर्ण सावधानी वर्ती गई है | यदि फिर भी
कोई त्रुटि रह जाती है तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी है | यदि कोई गलत जानकारी लेख
में पाठकों को प्राप्त होती है तो कृपया कमेन्ट या इमेल के माध्यम से हमें सूचित
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14
अप्रैल 1891-सूबेदार
रामजी सकपाल तथा भीमाबाई की चौदवी तथा अंतिम संतान के रूप में मध्यप्रदेश में
इंदौर के पास महू के मिलिट्री कैम्प में
शिशु का जन्म हुआ | नाम रखा गया भीमा, बाद में छोटे लाड़ले को सभी प्यार से भीवा
कहने लगे थे |
1894-रामजी
सूबेदार सेना से रिटायर होकर महाराष्ट्र में रत्नागिरी तहसील में अपने पैत्रक गाँव
आम्बावडे का पास कलदापोली गाँव में परिवार के साथ आकार बस गए थे |
1895-दापोली
से रामजी परिवार सतारा आ गया था |
अप्रैल
1896- रामजी
सकपाल से विवाह के तीस साल बाद, भीवा की माता भीमाबाई का सतारा में देहांत हो गया
|
नवम्बर
1900- अछूतो
के लिए स्कूल के दरवाजे बंद होने के कारण बहुत मुश्किल से गवर्नमेंट वर्नाकुलर हाई
स्कूल सतारा में एडमिशन लिया |
1903-बच्चों
की पढाई के लिए रामजी सतारा से बम्बई आकार लोअर परेल की डबक चाल में रहने लगे|
1904-
बम्बई की सरकारी एलफिस्टन हाई स्कूल में चौथी कक्षा में एडमिशन मिला |
1906-दाभोल
के पास वनंद गाँव निवासी भीकु धुत्रेवनकर की पुत्री रमाबाई से भायखले मछली बाजार
में विवाह हुआ |
1907-मैट्रिक(10th) पास की | भीमराव का सम्मान समारोह हुआ|
प्रसिद्द समाजसुधारक कृष्णाजी केलुस्कर ने ‘बुद्ध चरित्र’ पुस्तक भेंट की |
30
जनवरी 1908-बम्बई
के प्रतिष्ठित कालेज एल्फिस्टन कालेज में एडमिशन लिया|
1910-
अंग्रेजी , फारसी, गणित और तर्कशास्त्र विषयों का साथ इंटरमीडिएट पास किया |
दिसंबर
1912- रमाबाई
की कोख से पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम यशवंत रखा गया|
जनवरी
1913- बाम्बे
युनिवर्सिटी से फारसी और इंग्लिश विषयों के साथ B.A.
किया |
जनवरी
1913-बड़ौदा
रियासत में राज्य की फौज में लेफ्टिनेंट पद पर नियुक्ति हुई| 15दिन बाद ही पिताजी की बीमारी का समाचार
टेलीग्राम के माध्यम से मिला और बम्बई के लिए रवाना हो गए |
2
फरबरी 1913- पिता
रामजी मालोजी सकपाल का बम्बई में निधन हो गया | परिवार पर दुखों का पहाड टूट पड़ा |
बाद में बाबासाहेब ने लिखा, ऐसे पिता बहुत कम बच्चो को मिलते होंगे |
4
जून 1913- 22
वर्षीय युवा भीमराव को अमेरिका में पढाई के लिए बड़ौदा के महाराज
सयाजीराव गायकवाड़ द्वारा स्कालरशिप मंजूर की गई| एग्रीमेंट हुआ कि पढाई पूरी होने
के बाद भीमराव को बड़ौदा रियासत में दस साल तक नौकरी करनी होगी |
15
जून 1913- अमेरिका
की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढाई के लिए बम्बई से समुद्री जहाज द्वारा रवाना |
बाल्यावस्था में पुत्र गंगाधर की मृत्यु हुई |
1914-अमेरिका
गये लाला लाजपतराय से भीमराव अंबेडकर की मुलाकात ।
5
जून-1915- इकोनोमिक्स, सोशियोलोजी, हिस्ट्री, फिलोसॉफी, एन्श्रोपोलोजी
व पोलिटिक्स विषयों के साथ कोलंबिया युनिवर्सिटी
न्यूयार्क से एम.ए. किया। प्राचीन भारत में व्यापार विषय पर थीसिस
लिखी।
मई 1916- प्रो. गोल्डन वेजर के मानव शास्त्र
(एन्श्रोपोलोजी) सेमिनार में भारत में
जातियां विषय पर लेख पढ़ा | यह लेख डॉ. अंबेडकर के कई महानग्रंथों में पहली
किताब के रूप में छपा।
जून
1916- “ National
Dividend of India-A historical and analytical study” विषय
पर रिसर्च कर पीएच.डी के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी
में पेश किया। जिसमें ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा भारत में आर्थिक
शोषण की नंगी तस्वीर दुनिया के सामने रखी | 1924 में
यह ‘Provincial Decentralization
of Imperial Finance in British India’ नाम
से ग्रन्थ छपा और डिग्री अवार्ड की|
जून 1916- न्यूयार्क
में अपनी शानदार ऐजुकेशनल सफलता के बाद उच्च अध्ययन पूरा कर अमेरिका से विदा ली और
लंदन रवाना हुए।
जून
1916- बड़ौदा
महाराज सयाजीराव गायकवाड़ ने उच्च अध्ययन के लिए एक साल के लिए स्कॉलरशिप अवधि
बढ़ाई। अक्टूबर 1916- लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस
में एडमिशन । बैरिस्टर के कानून में डिग्री के लिए ग्रेज-इन में (बार एट लॉ) एडमिशन
| अमेरिका की तरह लंदन में भी ज्ञान साधना शुरू । कोलंबिया यूनिवर्सिटी
से पीएच.डी की डिग्री अवार्ड।
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1917-
कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएच.डी की डिग्री अवार्ड।
20
अगस्त 1917- बड़ौदा
महाराज द्वारा दुबारा स्कॉलरशिप अवधि न बढाए जाने के कारण
लंदन में आर्थिक संकट। पढ़ाई बीच में ही छोड़कर भारत लौटना
पड़ा।
सितम्बर
1917- बड़ौदा
रियासत में मिली स्कॉलरशिप के एग्रीमेंट की पालना में बड़ौदा
महाराज के मिलिट्री सेक्रेटरी के पद पर नियुकत।
नवम्बर
1917-
बड़ौदा रियासत में देश विदेश से उच्च शिक्षित डॉ. अंबेडकर का घृणित
अछूत समझकर घोर अपमान व तिरस्कार किया गया। चपरासी भी पत्र-फाइल
दूर से फेंककर देते थे, रहने के लिए कोई मकान नहीं मिला। सारी
व्यथा महाराज को सुनाई लेकिन कोई हल नहीं निकला। आखिर
नौकरी छोड़कर वापस बम्बई लौटे।
5 दिसंबर 1917- बम्बई के सिडनेहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड
इकोनोमिक्स में प्रोफेसर की पोस्ट के लिए आवेदन दिया।
19
मार्च 1918- दलितों
को लुभाने के लिए कांग्रेस की ओर से बम्बई में अखिल भारतीय छुआछूत निवारण सम्मेलन
शुरू किया गया । परन्तु उसमे डॉ. अंबेडकर ने भाग नहीं लिया।
अप्रैल
1918- धन
की कमी, रोजी-रोटी के लिए संघर्ष लेकिन हर जगह जाति ने पीछा
नहीं छोड़ा | 'Casts in India' और 'Small Holding in India and their Remedies' नामक
ग्रंथ छपवाये लेकिन बहुत कम पैसा मिला।
स्टॉक मार्केट और शेयर एडवाइजर्स कंपनी खोली, अच्छी चली
लेकिन जाति के कारण मुश्किलें बढ़ी, आखिर
बंद करनी पड़ी ।
11
नवम्बर 1918 - आर्थिक संकट में संघर्ष के दिनों में ट्यूशन
कार्य किया। बाद में 450 रू मासिक तनखा पर सिडेनहम कॉलेज में इकोनोमिक्स
के प्रोफेसर नियुक्त हुए | परिवार
में रमाबाई को बड़ी आर्थिक राहत मिली |
जनवरी
1918 - सौतेली माता जीजाबाई का देहांत हुआ।
1918 - परिवार का सबसे बड़ा सहारा बड़े भाई आनंदराव
का बीमारी के कारण निधन हो गया | एक
के बाद दूसरी मुश्किल दशा का सामना करना पड़ा।
27
जनवरी 1919- फ्रेंचाइज पर साउथबोरो कमीशन के सामने अछूत
वर्ग की ओर से गवाही दी। इसमे उन्होंने शोषित समाज के सामाजिक
आर्थिक विकास हेतु विस्तृत रिपोर्ट के साथ सबूत पेश कर
प्रतिवेदन दिया।
1919 - कोल्हापुर
निवासी दतोबा पवार के माध्यम से कोल्हापुर के दयालू महाराज
छत्रपति साहूजी महाराज से मिलने का सुअवसर मिला।
31 जनवरी 1920- साहूजी
महाराज की सलाह व आर्थिक सहायता से 'मूकनायक' (गूंगों का
नेता) नामक मराठी मासिक न्यूज पेपर शुरू किया। पांडूरंग नन्दराज सम्पादक नियुक्त
हुए | यह अछूतों के आंदोलन का मुख्य पत्र था।
21 मार्च 1920
- सामाजिक क्रांति के अग्रदूत साहू महाराज की प्रेरणा से कोल्हापुर राज्य
के माणगांव में अछूतों में जागृति के लिए पहला सम्मेलन रखा। अध्यक्षता डा. अंबेडकर ने की तथा साहूजी महाराज
ने क्रांतिकारी उद्बोधन
दिया | महाराज
ने सर्वजाति
भोज का आयोजन किया।
मई 1920 - साहूजी
महाराज की अध्यक्षता में नागपुर के अखिल भारतीय बहिष्कृत
परिषद का विशाल सम्मेलन। सामाजिक जीवन की शुरूआत
में अंबेडकर को एक नया मंच मिला।
1920 - साहूजी
महाराज बम्बई की मजदूर बस्ती में डॉ. अंबेडकर के किराए से
रह रहे छोटे से कमरेनुमा घर पर पधारे।
जून
1920
- कोल्हापुर नरेश से मिली आर्थिक सहायता व पारसी मित्र नवल मथेना
से कर्ज लेकर लंदन में लॉ व इकोनोमिक्स की अधूरी पढ़ाई पूरी
करने के लिए जाने की योजना
बनाई |
जून
1920
- सिडनेहम कॉलेज से प्रोफेसर पद को छोड़ा। ज्ञान साधना के लिए फिर
लंदन जाने की धुन लग
गई।
5
जुलाई 1920
- लंदन में फिर से लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स व बैरिस्टर के लिए ग्रेज
इन में एडमिशन लिया।
25
नवम्बर 1920 - लंदन
में स्टडी के दौरान धन की भारी कमी हो गई | रमाबाई
को चिट्टी में लिखा, रूपयों
की कमी के कारण यहां मुश्किल हालात में हूं। घर खर्च
के लिए अपने गहने बेचकर गुजारा कर लेना ।
जनवरी
1921 - बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु। देश में गांधी युग
की शुरूआत हुई
|
3
फरवरी 1921 - लंदन से छत्रपति साहूजी महाराज को लिखे पत्र
में डॉ. अंबेडकर ने बताया
कि वह मांटेग्यू व अन्य प्रतिष्ठित अंग्रेजों से मिलकर अछूतों के हकों
के लिए पूरी कोशिश कर रहे है।
जून
1921 - लंदन यूनिवर्सिटी ने “ब्रिटिश
भारतीय में प्रांतीय जमाबंदी” विषय में रिसर्च
पर एम.एससी. की डिग्री प्रदान की ।
4
सितम्बर 1921- साहूजी
महाराज को पत्र लिखकर 200 पौंड भेजने की विनती की और
लिखा, भारत आने पर यह रकम ब्याज के साथ चुका दूंगा।
अप्रैल
1922 - जर्मनी की बॉन युनिवर्सिटी में इकोनोमिक्स में
पीएच.डी के लिये गये। कुछ ही महीनों बाद लंदन से प्रो. एडविन कैनन का
बुलावा आया।
थीसिस में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ अखरती बातों
पर एतराज जताया |
1922
- लंदन में सारा पैसा खर्च होने के कारण , फिर
आर्थिक तंगी हो गई । थीसिस का कार्य बीच में ही छोड़कर वापस भारत आने का निश्चय किया |
अप्रैल
1923
- लंदन से बम्बई आये | बाद
में थीसिस का बाकी काम बम्बई में ही पूरा कर
लंदन भेजा।
जून
1923 - बॉम्बे
बार की अपलीट शाखा में बैरिस्टर भीमराव ने परिवार के गुजारे के
लिए वकालात शुरू की | मित्र नवल मथेना ने सनद के रूपये देकर मदद
की | जाति ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा |
नवम्बर
1923 - “रूपये
की समस्या' (Problem of Rupee )
विषय पर थीसिस लिखी। थीसिस पर डी.एससी (Doctor of
Science) की डिग्री अवार्ड |
दिसंबर
1923 - लंदन
के पब्लिशर पी.ए. किंग एंड संस से पुस्तक “प्रॉब्लम
ऑफ रूपी” का
प्रकाशन। दुनिया के अर्थशास्त्रियों ने सराहा। बम्बई में ठकक्कर एंड कंपनी ने 1947
में " History of
Indian Currency and banking" नाम
से किताब प्रकाशित की ।
1923 - समाज
सुधारक सीताराम बोले ने बम्बई काउंसिल में यह प्रस्ताव पास करवाया
कि सरकारी स्कूल, अस्पताल, तालाब, पनघट
आदि स्थानों का उपयोग अछूतों को भी दिया जाए।
15 जून
1924 - पुत्र
राज रत्न का जन्म हुआ
।
22
जून 1924 -
जिन शिक्षक के सरनेम से बाबासाहेब का सरनेम भी अंबेडकर रखा, वे
बाबासाहेब के घर पधारे।
19 जुलाई
1924 - पुत्रराजरत्न की बाबासाहेब की गोद में ही
मृत्यु | दुखों ने पीछा नहीं छोड़ा।
20
जुलाई 1924 - दलितों के शैक्षणिक सामाजिक व आर्थिक विकास
हेतु “बहिष्कृत हितकारिणी
सभा” की
स्थापना ।
नवम्बर
1924 - बहिष्कृत हितकारिणी सभा की बम्बई प्रदेश का
सम्मेलन शोलापुर | जिले
के वारसी नामक स्थान पर हुआ | जिसमें अंबेडकर ने नया नारा दिया
“अपनी सहायता श्रेष्ठ सहायता” ।
4
जनवरी 1925 - बहिष्कृत हितकारिणी सभा की ओर से शोलापुर में
हाई स्कूल के बच्चों के लिए एक हॉस्टल शुरू |
अप्रैल
1925 - जैजूरी
में अछूतों की विशाल सभा में उनकी दीनहीन दुर्दशा के लिए उनको फटकारा तथा
अपने उद्धार के लिए खुद खड़े होने का आह्वान किया।
20
जून 1925
- बाटली बॉयज एकाउंटेंसी इस्टीट्यूट में मर्केन्टाइल लॉ के प्रोफेसर नियुक्त, मार्च
1928
तक रहे ।
1925 – The Evaluation of Provincial
Finance in British India : Dissertation on the provincial Decentralization of
Imperial Finance in India- “ब्रिटिश भारत में प्रांतीय अर्थव्यवस्था का विकास” ग्रंथ
का प्रकाशन|
15
दिसम्बर 1925- बहिष्कृत
हितकारिणी सभा द्वारा जलगांव, पनवेल (महाराष्ट्र) तथा अहमदाबाद
में भी शिक्षा के प्रचार के लिए हॉस्टल खोले।
1927 - कोरेगांव
युद्ध स्थल पर आयोजित सभा में शिक्षा पर जोर दिया। यहां 500
बहादूर महार सैनिकों ने बाजीराव पेशवा की फौज के 2500
सैनिकों को भीषण युद्ध में परास्त किया था।
फरवरी
1927
- बॉम्बे लेजिस्लेटिव असेम्बली में मेम्बर मनोनित | 8 फरवरी को शपथ ग्रहण की।
10
मार्च 1927
- असेम्बली में शराबबंदी व अर्थव्यवस्था पर विस्तृत रिपोर्ट पेश की ।
19,20
मार्च 1927- कोसाबा जिले के महाड़ के चवदार तालाब का पानी
का उपयोग अछूतों
के लिए करवाने के लिए सत्याग्रह का नेतृत्व,
तालाब का पानी
का उपयोग किया।
23
मार्च 1927 - महाड़ सत्याग्रह में अछूतों में संगठन व संघर्ष
का बिगुल बजाने के बाद
बम्बई लौटे।
25
मार्च 1927 - महाड़ के रूढिवादी हिंदुओं ने चवदार तालाब को
गाय के गोबर व मूत्र से कथित रूप से शुद्ध करने का कर्मकांड किया।
3
अप्रैल 1927
- मराठी पाक्षिक मैग्जीन 'बहिष्कृत
भारत” का
प्रकाशन शुरू | सम्पादक डॉ.
अंबेडकर ही थे।
8
जून 1927 - कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त
की |
26
जून 1927
- बहिष्कृत भारत अखबार में लिखा,
महाड़ के सनातनी हिंदुओं द्वारा तालाब को शुद्ध किया जाना अछूतों के लिए
अपमानजनक है।
5
अक्टूबर 1927 - बम्बई विद्यापीठ के सीनेट में क्रिमीनल
ट्राइब्स और अछूतों के प्रतिनिधित्व
की मांग की
सितम्बर
1927 - प्रसिद्ध
चित्रकार सी बी खैरमोडे और उनके साथियों ने डॉ. अंबेडकर को “बाबासाहेब” और
रमाबाई को “माईसाहेब” जैसे
सम्मानजनक संबोधन करने की सूचना दी।
24 दिसम्बर
1927- बम्बई
से महाड़ तालाब सत्याग्रह के लिए समुद्री मार्ग से रवाना।
25 दिसम्बर
1927- रास्ते
में दारागांव में हजारों अछूतों ने जयघोष के साथ स्वागत किया। महाड़
में तनाव, रूढ़िवादी हिंदुओं का विरोध के लिए महाड़ में
पड़ाव लेकिन दो समाज सुधारक सवर्ण नेताओं ने
सत्याग्रह का समर्थन किया।
25
दिसम्बर 1927- रात नौ बजे महाड़ के सम्मेलन स्थल पर खड़ा खोद
कर, चिता बनाकर अछूतों वंचितों के काले कानून वाले ग्रंथ
“मनुस्मृति” को ब्राह्मण
साथी सहस्त्रबुद्धे व चित्रे के हाथों द्वारा जलाया गया। हिंदुओं के
सामाजिक ढांचे में बदलाव की मांग। मनुस्मृति दहन से धर्म के ठेकेदारों
को भारी सदमा।
27 दिसम्बर 1927- मजिस्ट्रेट के साथ लंबी चर्चा के बाद सत्याग्रह स्थगित करने का प्रस्ताव लेकिन संघर्ष जारी रखने का एलान | दूसरे दिन सुबह जुलूस के रूप मे से हजारों नर-नारी चवदार तालाब पर पहुंचे |
दिसम्बर
1927-अमरावती के प्रसिद्ध अंबादेवी मंदिर में प्रवेश
मसले पर सम्मेलन अछूतों की चेतना के बाद मंदिर ट्रस्ट ने प्रवेश
का भरोसा दिलाया।
3 फरवरी
1928 -मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड योजना में सुधार तथा
संशोधन पेश करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त साइमन कमीशन भारत
यात्रा में बम्बई आया। कांग्रेस ने बहिष्कार किया।
फरवरी
1928 -साइमन कमीशन की मदद के लिए सरकार ने सेन््ट्रल
असेम्बली के निर्वाचित सदस्यों की कमेटी बनाई, अंबेडकर
भी चुने गये। लेकिन बाद में कमेटी की रिपोर्ट पर मतभेद होने के
कारण अंबेडकर ने हस्ताक्षर नहीं किए।
फरवरी
1928 – डॉ. भीमराव अंबेडकर जी ने अछूतों के अधिकारों
के लिए कमीशन की कमेटी को अपने द्वारा बनायीं गई अलग रिपोर्ट पेश की। तथा सरकारी
नौकरियों में भारतीयकरण की मांग
के अलावा भी अछूतों को भारतीय सेना तथा
भारतीय नाविक
दल और पुलिस दल में भर्ती के
अधिकार देने की मांग उठाई।
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अप्रैल 1928 - रत्नागिरी
जिले के चिपलुण में दलित जाति परिषद का सम्मेलन का आयोजन किया गया । जिसमे हिंदू
समाज में सुधार के प्रति सोच पैदा करने की कोशिश |
8
अप्रैल 1928 – बाबा साहेब ने अछूतों के
मानवीय अधिकारों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए “समाज समता
संघ” का गठन किया । बाल गंगाधर तिलक के पुत्र व अंबेडकर के सहयोगी
श्रीधर तिलक इस संघ के प्रमुख आधार थे।
19
मई 1928 - दापोली
गांव में अछूतों का यज्ञोपवित (जनेऊ) संस्कार का कार्यक्रम का
आयोजन किया गया | जहाँ 100
महारों को जनेऊ धारण कराये गये।
29
मई 1928 - इंडियन
स्टेच्युरी कमीशन (साइमन कमीशन) के समक्ष गवाही दी। अशिक्षित
आदिवासी स्त्री पुरूष के लिए व्यस्क मताधिकार, आरक्षित स्थान, शिक्षा
व रोजगार की मांग की |
जून 1928 - बम्बई के
गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में प्रोफेसर नियुक्त | अध्ययन के साथ सामाजिक
गतिविधियों में भी सक्रिय ।
29 जून 1928 -मराठी
में “समता” मासिक अखबार शुरू किया। देवराज नाइक संपादक
बने।
अगस्त 1928 – बाबा
साहेब अम्बेडकर जी ने शिक्षा के प्रचार के लिए “दलित
जाति शिक्षण समिति' की स्थापना की थी ।
10 अगस्त 1928 -मोतीलाल
नेहरू की रिपोर्ट जिसे भारत का स्वराज्य संविधान कहा जाता
है, प्रकाशित हुआ इसमें दलितों के लिए विधान मंडल में विशेष प्रतिनिधित्व
का प्रावधान अव्यवहारिक व हानिकारक मानते हुए नहीं किया
गया। बाद में गांधीजी भी इसके खिलाफ रहे।
7
दिसम्बर 1928 -लाला
लाजपतराय की मृत्यु पर 'बहिष्कृत भारत' में लेख
प्रकाशित किया।
13 अप्रैल 1929 – बाबा
साहेब अंबेडकर जी की बड़ी बहन तुलसीबाई जी का देहांत हो गया।
अप्रैल 1929 -रत्नागिरी
जिले के चिपलूण में दलित जाति परिषद् के सम्मेलन में ब्राह्मण मित्र देवराज नाइक ने हजारों अछूतों को यज्ञोपवित (जनेऊ) पहनाए
ताकि रुढ़िवादी हिंदुओं में सुधार की सोच पैदा हो।
मई 1929 -जलगांव, महाराष्ट्र
दलित जाति परिषद् ने रूढ़िवादी हिंदुओं को चेताया कि यदि
उनके व्यवहार में सुधार नहीं हुआ तो दूसरे धर्म का आश्रय
लेना पड़ेगा।
13 अक्टूबर 1929- महाराष्ट्र के पूना में पार्वती मंदिर में मंदिर प्रवेश के लिए
सत्याग्रह की शुरुआत की।
23 अक्टूबर 1929-खानदेश क्षेत्र का दौरा। चालीस गांव रेलवे
स्टेशन पर सर्वण तांगेवाले ने अंबेडकर को तांगे पर बैठाने से मना कर दिया।
29 अक्टूबर 1929-खानदेश
के एक स्कूल मे गए तो हैडमास्टर ने स्कूल में आने से रोक दिया लेकिन
चालीस गांव में पहुंचे तो अछूतों ने जोरदार स्वागत किया।
2 मार्च 1930 -अछूतों के द्वारा मंदिर में प्रवेश का अधिकार हासिल करने के लिए बाबा साहेब ने नासिक
के कालाराम मंदिर पर सत्याग्रह शुरू किया। अनुशासित विशाल जुलूस मंदिर
की ओर बढ़ रहा था । जिसके कारण प्रबंधकों ने मंदिर दरवाजे बंद किए तो गोदावरी नदी के
किनारे आयोजित सभा के सभी सदस्यों ने सत्याग्रह की शपथ ली।
3 मार्च 1930 -अहिंसक ढंग से सत्याग्रह शुरू। धोखे में समझौता
करवाया औरसत्याग्रहियों पर भारी हमला हुआ । अंबेडकर भी घायल हुए । दोनों पक्षों
में जोरदार संघर्ष हुआ। आखिर में गोदावरी नदी मे स्नान किया। लेकिन मंदिर
मे दर्शन नहीं कर सके | सत्याग्रह 1935 तक
जारी रहा।
मई 1930 -साइमन
कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित। भारतीय दृष्टिकोण की उपेक्षा।
पृथक निर्वाचन प्रणाली के आधार पर ही नये सुधारों की सिफारिश
| दलितों के अपमान वाली शर्त का अंबेडकर ने विरोध किया।
8 अगस्त 1930 -डिप्रेस्ड
क्लास कांग्रेस का महाराष्ट्र नागपुर में प्रथम अधिवेशन हुआ तथा ब्रिटिश सरकार की आर्थिक
शोषण भरी नीतियों की बहुत कड़ी निंदा की। और अछूतों को
चेतावनी दी कि वे केवल राजनीतिक शक्ति में हिस्सा पाने से सभी समस्याओं का हल नहीं
होगा, सामाजिक सुधार व परिवर्तन पर जोर देना होगा। शिक्षा का प्रसार, सामाजिक
व व्यक्तिगत कुरीतियों को छोड़ना होगा।
6 सितम्बर 1930 -वायसराय ने अछूतों के नेता की हैसियत से
अंबेडकर को प्रथम गोलमेज कॉन्फ्रेंस में शामिल होने का आमंत्रण
दिया। यह अछूतों के लिए गौरव की बात थी।
सितम्बर 1930 -लंदन जाने से
पहले बम्बई में सभा का आयोजन। अंबेडकर को मानपत्र व थैली
भेंट कर लंदन यात्रा की शुभकामनाएं दी। अंबेडकर ने
सभी सहयोगियों का आभार जताया और भरोसा दिलाया कि देश की
आजादी की मांग कर स्वराज्य की मांग पर अडिग रहूंगा। अछूतों के
मानवीय हकों की पूरजोर मांग करूंगा ।
4 अक्दूबर 1930 - गोलमेज कॉन्फ्रेंस लंदन में भाग लेने के लिए रवाना। देश में असहयोग
आंदोलन चल रहा था। कांग्रेस ने गोलमेज कॉन्फ्रेंस का बहिष्कार
किया। अंबेडकर को देशद्रोही, अंग्रेजों का पिट्ठू कहा गया।
अखबारों ने भी विरोध में खूब लिखा। लेकिन किसी ने भी कॉन्फ्रेंस
में भाग ले रहे मुस्लिम प्रतिनिधियों के बारे में कुछ नहीं बोला या लिखा
| राजनीतिक पार्टियों के नेता, रियासतों के
महाराजा, नवाब, सिख, ईसाई, मुस्लिम प्रतिनिधियों सहित कुल 89 प्रतिनिधियों ने
भाग लिया।
नवम्बर 1930 -अंबेडकर लंदन
पहुंचे तो वातावरण सहानुभूतिपूर्ण था। खासतौर से अछूतों
की समस्याओं के प्रति वहां सभी की सहानुभूति थी।
12
नवम्बर 1930
-ब्रिटिश प्रधानमंत्री रम्जे मेक्डोनाल्ड की अध्यक्षता मे गोलमेज
कॉन्फ्रेंस शुरू हुई। ब्रिटिश लोगों का भारी उत्साह । जार्ज पंचम ने सेट जेम्स पैलेस
में इस आयोजन का उद्घाटन किया। कहा, हम इस
कॉन्फ्रेंस में एक नया इतिहास लिखने जा रहे है।
17-21 दिसंबर 1930- अंबेडकर ने अपने
भाषण में ब्रिटिश सरकार को आड़े हाथों लेते हुए अंग्रेजी
सरकार की जगह स्वराज्य की मांग की। भारत में ब्रिटिश सरकार
के दौरान करोड़ों अछूतों की दयनीय दशा मे सुधार नहीं लाने
के लिए ब्रिटिश सरकार को खूब कोसा। गरीबों, किसानों का शोषण
करने वाले पूंजीपति और जमींदारों की रक्षक सरकार को हटाने
की मांग की । भावी संविधान में दलितों के साथ न्याय की मांग की।
20-25 दिसम्बर 1930-भाषण
से सभी सदस्य प्रभावित | अखबारों में भी खूब छपा | अंबेडकर को
आजादी के किसी क्रांतिकारी दल से संबंधित होने की आशंका जताई
| बड़ौदा महाराज गायकवाड़ ने अंबेडकर की प्रतिभा की खूब सराहना
की | भोज में विशेष आमंत्रित किया।
दिसम्बर 1930 -व्यस्त कार्यक्राम के बावजूद कई किताबें
खरीदी और बक्से भरते गये।
19
जनवरी 1931-गोलमेज सम्मेलन का पहला दौर समाप्त, अंबेडकर की प्रभावी भूमिका ।
26 जनवरी 1931-सरकार
ने जेलों में बंद कांग्रेस के नेताओं को रिहा कर दिया।
13
फरवरी 1931 -बाबासाहेब लंदन से बम्बई के लिए रवाना।
27
फरवरी 1938 -बम्बई
पहुंचे। कई संगठनों व समर्थकों द्वारा भारी स्वागत। उन्हें अछूतों
के मसीहा का सम्मान दिया। देश मे राजनीतिक माहौल तेजी से
बदल रहे थे।
फरवरी 1938 -बम्बई कौंसिल के मेम्बर नियुक्त । 5 मार्च 1938 -कई
दिनों के विचार विमर्श के बाद गांधी और भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच एक समझौता हुआ | गांधीजी ने
सविनय अविज्ञा आंदोलन
वापस लिया और दूसरी गोलमेज कॉन्फ्रेंस में शामिल होने की हां कर दी।
14
मार्च 1938 - नासिक की सभा में अछूतों को आदेश दिया कि भले ही उनमें जोश व आक्रोश
है लेकिन हर हालात में धैर्य, शांति व अहिंसात्मक ढंग से आंदोलन
करना है। अगले दिन जुलूस निकाला। सवर्णों ने पत्थर बरसाये
| लेकिन सहा क्योंकि अपना लक्ष्य हासिल करना था।
मार्च 1938 -देश
भर में कांग्रेस के नेता, हिंदू महासभा, आर्य समाज, कई
हिंदू संगठन अंबेडकर को देशद्रोही अंग्रेजों का पिटूठू कह कर, काले
झंडे दिखाकर अपमान कर हे थे जबकि दुनिया में प्रशंसा हो रही थी।
28
जून 1931 -अहमदाबाद
में समता सैनिक दल, नवयुवक मंडल व कई दलित संगठनों ने
स्वागत किया। दरियापुर में विशाल सभा का आयोजन। कांग्रेस, हिन्दू
व कुछ विरोधियों ने काली झंडिया निकाली तो समता सैनिक
दल के स्वयं सेवकों ने उन्हें दबोच लिया | चांदी के
कास्केट में मानपत्र भेंट किया। कहा, ” मैं
राजनीतिक आजादी से पहले करोड़ों अछूतों की
सामाजिक आजादी चाहता हूं।”
जुलाई 1931 -दूसरी गोलमेज कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किये गये
प्रतिनिधियों की सूची जारी भारत के नये संविधान का प्रारूप तैयार
करने वाली कमेटी में अंबेडकर का नाम शामिल | देश-विदेश
से बधाईयां । अब अखबारों ने अंबेडकर की
राष्ट्रभक्ति की प्रशंसा की ।
6
अगस्त 1931-दुनिया
में अंबेडकर की प्रसिद्धि से गांधीजी परेशान। पत्र लिखकर डॉ.
अंबेडकर से मिलने की इच्छा जताई।
14
अगस्त 1931
-अपने सहयोगियों के साथ बम्बई के मलाबार हिल्स स्थित मणि भवन में
ठहरे गांधीजी से मुलाकात की, कांग्रेस का उनके प्रति अपमानजनक व्यवहार, अछूतों
की दयनीश दशा, पृथक निर्वाचन आदि विषयों पर चर्चा के दौरान तनाव व कड़वाहट भरी यह
मुलाकात किसी ठोस नतीजे के ही खत्म हो गई |
14
अगस्त 1931 -दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने से पहले महाराष्ट्र बम्बई के
कावसजी सभागृह में विदाई समारोह में बाबासाहेब अम्बेडकर जी कहा कि , देश
के करोड़ों अछूतों के हकों के लिए हम जमीन
आसमान एक कर देंगे ।
15 अगस्त 1931 - दूसरे गोलमेज
सम्मेलन में भाग लेने के लिए लगभग सभी प्रतिनिधि मुलतान
नाम समुद्री जहाज से लंदन रवाना। उत्साह व उमंग से भरे हजारों
साथियों ने बाबासाहेब को विदा किया।
29 अगस्त 1931 - लंदन
पहुंचे। बुखार, जुकाम व उल्टी, दस्त की शिकायत काफी कमजोरी
आ गई।
29 अगस्त 1931 - गांधीजी, सरोजनी नायडू व
मदनमोहन मालवीय बम्बई से लंदन पहुंचे। कई
लोगों को गांधीजी के फिर नहीं आने की आशंका थी लेकिन
अंबेडकर को पूरा मालुम था कि कम्युनल अवार्ड के बाद अछूतों
की खिलाफत के लिए गांधीजी इस बार जरूर आएऐंगे।
7 सितम्बर 1931 - डॉ. अंबेडकर के
स्वास्थ्य में सुधार हुआ ।
7 सितम्बर 1931 - दूसरी गोलमेज
सभा शुरू। पहली सभा में 89 लेकिन इस बार 125 प्रतिनिधि थे।
15 सितम्बर 1931- गोलमेज सम्मेलन
के दौरान फेडरल स्ट्रक््चर कमेटी में गांधीजी ने अपना
पहला भाषण दिया। कहा, देश के सभी जाति, धर्म व वर्ग की संस्था
कांग्रेस के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में बोल रहा हूं। यह भी दावा
किया कि कांग्रेस व गांधी ही भारत के प्रमुख प्रतिनिधि है।
15 सितम्बर 1931- फेडरल व स्ट्रक््चर
कमेटी में डॉ. अंबेडकर का पहला भाषण।सम्मेलन में कई राजा महाराजाओं की मौजूदगी में
उनकी निरंकुश, तानाशाही व सामंतशाही पर सवाल उठाया।
सितम्बर 1931 - काफी कोशिशों के बावजूद कांग्रेस व मुस्लिम
लीग में समझौता नहीं हो पाया। गांधीजी ने माइनोरिटीज समझौता तैयार
कर ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर को पेश किया। मुस्लिमों के विशेष
प्रतिनिधित्व का समर्थन किया लेकिन अछूतों का पूरी शक्ति व क्षमता के
साथ विरोध किया।
सितम्बर 1931 - अंबेडकर ने माइनोरिटीज कमेटी में चेताया कि
आजादी के बाद सत्ता मुट्ठी भर हिंदुओं या मुसलमानों को सौंपने की
बजाय अधिकार व हिस्सा सभी समुदायों को मिले।
8 अक्टूबर 1931 - गांधीजी
ने कहा, मैं अल्पसंख्यकों की एकता करने में असफल रहा हूं।
1 अक्टूबर 1931 -
फैसला लेने के लिए गांधीजी ने एक सप्ताह का समय मांगा। अंबेडकर
को फैसले में देरी से अछूतों के नुकसान की आशंका।
12 अक्टूबर 1931- अंबेडकर ने
ब्रिटेन व भारत के टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर छपवाकर
खुलासा किया कि गांधीजी खुद अछूतों के अधिकारों का विरोध
कर रहे है। साथ ही मुस्लिम प्रतिनिधियों से भी ऐसा ही विरोध करने
के लिए शर्त लगा रहे है।
अक्टूबर 1931 - गांधीजी
के अछत विरोधी व्यवहार की भारत में निंदा। दुनिया अंबेडकर के साथ, गांधीजी
अलग-थलग व असफल |
नवम्बर 1931- अंबेडकर
ने ब्रिटेन के कई संस्थानों में भाषण दिए व अखबारों में अछूतों
के हकों के लिए लेख लिखे।
5 नवम्बर 1931 -ब्रिटेन
के किंग ने गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने आए प्रतिनिधियों को भोज
दिया। किंग ने कुछ ही प्रतिनिधियों को विचार के लिए आमंत्रित किया।
अंबेडकर ने भारत में दलितों की दयनीय दशा का मार्मिक ब्यौरा
प्रस्तुत किया | किंग ने शुभकामनाएं दी।
12 नवम्बर 1931 -अछूत सहित सभी
अल्पसंख्यक वर्ग के प्रतिनिधियों ने समझौता पैक्ट तैयार
ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर को सौंपा । जिसमें अछूतों के भी विशेष प्रतिनिधित्व
को स्वीकार किया।
1 दिसम्बर 1931 -लंदन में ढ़ाई महीने की उठा पटक, विचार
विमर्श व दांव पेंच के बाद दूसरी गोलमेज
सभा सम्पन्न हुई।
दिसम्बर 1931 - भारत
के अखबारों ने गोलमेज कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए अंबेडकर की
कड़ी निंदा की | फिर अंग्रेजों का पिट्ठू, देशद्रोही, राक्षस
व हिंदू धर्म का विनाशक की संज्ञा दी | फिर हत्या की
धमकियां ।
5 दिसम्बर 1931 - अंबेडकर
लंदन से अमेरिका गये। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में गुरूजन प्रोफेसरों
से मिले । खूब किताबें खरीदी जिन्हें 32 बड़ी पेटियों
में भर कर भारत भेजा |
4 जनवरी 1932 -एक
महीना अमेरिका में रहने के बाद वापस लंदन आए।
4 जनवरी 1932 -गोलमेज
कॉन्फ्रेंस से लौटते ही गांधीजी सहित कांग्रेस के कई नेताओं की
गिरफ्तारी | गांधीजी को पूना की यरवदा जेल में रखा।
29 जनवरी 1932-डॉ.
अंबेडकर लंदन से बम्बई आए।
29 जनवरी 1932-लंदन से बम्बई पहुंचे। 24 बड़े बक्से भर कर बुक्स भी लाए। बम्बई बंदरगाह पर जोरदार स्वागत, परेल तक विशाल जुलूस निकाला ।
Great
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